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बाहर मैं... मैं अंदर... मिल रही है अमेज़ॉन पर-  https://www.amazon.in/gp/aw/d/9386871491/ref=tmm_hrd_title_0?ie=UTF8&qid=&sr= https://www.amazon.in/gp/aw/d/9386871491/ref=tmm_hrd_title_0?ie=UTF8&qid=&sr= प्रभात बुक्स पर-  https://www.prabhatbooks.com/bahar-main-main-andar.htm फ्लिपकार्ट पर-  https://www.flipkart.com/bahar-main-andar/p/itmfa9hhfwcwfnuy आई बी पी बुक्स पर-  https://www.ibpbooks.com/bahar-main-main-andar-hindi/p/37220 ओम पब्लिकेशन पर-  https://ompublications.in/product/books/OM35807
'बाहर मैं... मैं अंदर...' ---------------------------  'मैं अंदर...' हिस्से की जो कविताएँ हैं, वे कवि के गहरे आत्मचिंतन से उपजी हैं। स्वयं को जानने की जिज्ञासा जैसा गूढ़ विषय, कविता के परंपरागत विषयों से सर्वथा भिन्न है, लेकिन व्यंजना में कवि का आशय बहुत कुछ कह जाता है। वैसे तो यह विषय मानवीय या उससे अधिक लगभग दार्शनिक सा विषय है, लेकिन ऐसा विषय होते हुए भी अपने भाषिक प्रयोगों के माध्यम से कवि अनकहे को भी कहने की सामर्थ्य रखता है। भाषा और नए प्रतीकों के प्रयोग से कवि अपने भावों को प्रवाह में उद्घाटित करता चला जाता है।     आत्म से साक्षात्कार की यह कविता कवि के गहन अंतर्द्वंद्व से उपजी है। वह सहज है, सरल है। अतः दुनियावी अर्थों से एकदम कदमताल नहीं मिला पाता। जीवन- उद्देश्यों को काव्य रूप देकर वह वृहद् आधार प्रस्तुत करता है। आत्म की पहचान और स्वातंत्र्य-अनुभूति उसकी मूल मनोवृत्ति है। उसी को पाने की जद्दोजहद में उसके हृदय से कविता निःसृत हुई है। आधुनिक जीवन शैली के दबावों से मानव संवेदना पर जो कुछ भी असर हुआ है, उसी की प्रतिक्रिया में यह कविता प्रस्फुटित हुई है। यह कवि
https://www.kafaltree.com/goody-goody-days-part-7/ अंतर देस इ (... शेष कुशल है !) गुडी गुडी डेज़ ( झुटपुटे के खेल ) पूस का महीना था | शाम का समय | पप्पन उदास बैठे थे | इसके प्रदर्शन के लिए उन्होंने ये किया था कि आँखें ऊपर जहां भी शून्य लिखा हुआ हो वहां और अपनी तशरीफ़ की कटोरी घर के बाहर चबूतरे पर टिका दी थी | बहुत प्रयासों के बाद भी उनकी तशरीफ़ अभी इतनी सी ही थी | आमतौर पर उंकडू बैठते थे | आज उदासी की वजह से चबूतरे की ज़रा सी मदद लेकर टिक गए थे | मोहल्ले के लौंडों में सबसे छोटे माने जाते थे पप्पन | देखने में भी और जैसा कि लोगों का कहना था , हरकतों से भी | मासूमियत उनके होठों से टपकती और आँखों से झपकती थी |      उदासी थी तो उसका कारण भी रहा होगा | कुछ लोग पूछने को आए | वैसे आमतौर पर पप्पन खुद पूछते कम बताते ज़्यादा थे | ` क्या हाल हैं ?’ ` ठीक नहीं है |’ ये दोनों वाक्य एक ही श्री मुख से निकलते वो भी लगभग एक साथ | कभी - कभी तो दूसरा वाला पहले निकल आता | बताते - पूछते और कुछ न बताते न पूछते समय पप्पन के दोनों गालो