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जुलाई, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

धारा ३७७

एक विज्ञापन - सुन्दर, सुशील, गृहकार्य दक्ष बालक हेतु सरकारी सेवारत सजातीय वर चाहिए ... एक वार्तालाप - पापा , पापा कह रहे हैं आफिस से आते वक्त बाज़ार से चूड़ियाँ ले आना ... एक त्यौहार - भाई - भैया इस बार रक्षाबंधन पर क्या गिफ्ट लोगे ?... एक पहेली - बताओ तो तुम्हारे पप्पू चाचा के पत्नी तुम्हारे क्या लगे ? उत्तर - चीचा , चाचा , चोचो ??.... एक फिल्म - पत्नी पत्नी और वो ... एक गाना - राजा को राजा से प्यार हो गया .... ये कैसा सामाजिक बदलाव है ...अपसंस्कृति , मानवाधिकार , फ्रीडम आफ च्वाइस , या मात्र विचारों का संक्रमण काल जो व्यवहार के स्तर पर उतर चुका है !!

एक और प्रेम कविता

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क्या करें हमारे प्यार पर तो बाज़ार छा गया .... शर्की सल्तनत की आखिरी निशानी गिर चुके से ... खँडहर से खड़े खड़े किले की ऊबी दीवारों पर जब तुमने लिखा था हमारा नाम ये सोचा ना होगा की एक दिन हम 'बातवाला पीसीओ' के साइनबोर्ड के नीचे आ जाएंगे ॥ जिस पेड़ के पेट को छीलकर तुमने पान के पत्ते सा कुछ उकेरा था उसकी जड़ों के ऊपर अब .. टायरों के निशाँ हैं गिर चुके से खंडहर से खड़े खड़े किले की ऊबी दीवारों को देखने अब भी कुछ लोग आते हैं उनकी गाड़ियों के लिए पार्किंग लौट तो चाहिए !!

मेरी प्रेम कविता

मै ....फटे अखबारों की तरह उड़ता रहा यहाँ वहां तुम ...मखमली फाहों के मानिंद मुझे सहेजती रही !!

लोहिया -नरेश सक्सेना

लोहिया -नरेश सक्सेना (मृत्यु से एक वर्ष पूर्व लिखी गयी ) एक अकेला आदमी गाता है कोरस खुद ही कभी सिकंदर बनता है कभी पोरस युद्ध से पहले या उसके दौरान या उसके बाद जिरहबख्तर पहन कर घूमता है अकेला और बोलता है योद्धाओं की बोलियाँ -खाता है गोलियाँ भांग की या इस्पात की? देश भर में होता है चर्चा अपनी ही जेब से चलाता है -देश भर का खर्चा एक पेड़ का जंगल शिकायत करता है वहां जंगलियों के न होने की!! ("समय" स्वर्ण जयन्ती विशेषांक -१९७८ से साभार )

अर्नेस्तो कार्देनाल की कविताओं का अनुवाद

तीसरी किश्त कोस्टारीका में गाडीवान गाते हैं सड़कों पर मंदालिन लिए वे सफ़र में हैं . तोतों के रंग में रंगी गाडियां चलती हैं और रंगीन रिबन पहने बैल छोटी छोटी घंटियाँ टुन्न टुनाते और सींगो में फूल लगाए चलते हैं । जब यह कोस्टारीका में काफ़ी चुनने का वक्त होता है और कहवे से भरी गाडियां चलती हैं और वहाँ शहरी चौराहों पर बैंड बाजे बजते हैं सन जोन्स की बालकनियों और खिड़कियों पर लडकियां और फूल झूलते हैं लडकियां , बगीचों की तरफ़ बढ़ती हैं और प्रेसीडेंट सन जोन्स में पैदल चलता है !!

भ्रष्टाचार का गुणा गणित

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सरकारी अमलों में भ्रष्टाचार (यहाँ मुख्यतः रिश्वत की बावत प्रयुक्त )के सम्बन्ध में बहुत सी उक्तियाँ ,फब्तियां और सिद्धांत चलन में हैं .चिट्ठाकार स्वयं एक सरकारी मुलाजिम है लिहाजा भुक्तभोगी के साथ कुकर्मकरता भी है (प्राइवेट गमलों (बतर्ज़ अमलों )में भ्रष्टाचार का अध्यन फिर कभी )...आपकी जुगाली के लिए कुछ नियम परिनियम प्रस्तुत हैं - १ .अगर सही फंसेगा तो ना बचेगा ,अगर गलत फंसेगा तो साफ़ बचेगा. दूसरे शब्दों में- अगर पैसा कमाओगे और कहीं फंसोगे तो बच जाओगे और नहीं कमाया और फंसे तो नहीं बचोगे . २ भ्रष्टाचार तो भ्रष्टाचार है चाहे वो एक रूपये का हो या सौ का . ३ . स्केल - ४ . स्केल बहुतसे ??छोडे गए हैं.ये मेरी अपनी सीमा दर्शा रहे हैं.ज़रा नीचे के दो रिचटर स्केलों पर अपने को माप कर देखिये आपके अन्दर भष्टाचार का कितना भारी कम्पन है!!

वो नहीं आएंगी तुम्हे देखने -नागार्जुन

वो नहीं आएंगी तुम्हे देखने - नागार्जुन तुम तो नहीं गईं थीं आग लगाने तुम्हारे हाथ मे तो गीला चीथडा नहीं था. आँचल की ओट में तुमने तो हथगोले नहीं छिपा रखे थे. भूख वाला भड़काऊ पर्चा भी तो नहीं बाँट रही थी तुम, दातौन के लिए नीम की टहनी भी कहाँ थी तुम्हारे हाँथ में, हाय राम ,तुमतो गंगा नहा कर वापस लौट रही थी. कंधे पर गीली धोती थी,हाँथ में गंगाजल वाला लोटा था बी .एस .ऍफ़ . के उस जवान का क्या बिगाडा था तुमने? हाय राम,जांघ में ही गोली लगनी थी तुम्हारे ! जिसके इशारे पर नाच रहे हैं हुकूमत के चक्के वो भी एक औरत है! वो नहीं आयेगी अस्पताल में तुम्हे देखने सीमान्त नहीं हुआ करती एक मामूली औरत की जांघ और तुम शहीद सीमा -सैनिक की बीवी भी तो नहीं हो की वो तुमसे हाँथ मिलाने आएंगी! (मार्च ७४ में बिहार छात्र आन्दोलन के समय कर्फ्यू में एक महिला को गोली लगने के सन्दर्भ में लिखी गयी नागार्जुन की सीधी कविता जो जौनपुर से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका ”समय” के १५ जून १९७४ के अंक में प्रकाशित हुई थी.)