बचपने में कुछ ऐसे ही फूटते है उदगार .... हर घर में बिन लादेन घुसा हर हाँथ में आज दुनाली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है ! हिन्दू मुस्लिम अगडे पिछडे दूरी बढ़ती ,बढ़ते झगडे बिन बात हमेशा रहे लड़े थी आदमजात कभी अपनी हमने कुछ और बना ली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है! रिश्तों की बधिया टूट गयी थी प्रेम की कलई छूट गयी दिल की गरमाई रूठ गयी मखमल से संबंधों पर अपने हमने पैबंद लगा ली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है ! अज्ञान अनीति का कान्धा ले बढ़ते जाते हैं धन काले रिश्वतखोरी और घोटाले घोटाले का चारा है और घोटाले की थाली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है! युग पोत मस्तूल रहे हैं हम संस्कृति को भूल रहे हैं हम विस्मृति में झूल रहे हैं हम पश्चिम के अर्जुन बानों पर बूढी सी देह टिका ली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है ! बढ़ती जाती है बेकारी भुखमरी गरीबी लाचारी छल कपट अनीति मारामारी कौवे को झूठा है प्यारा और सच को मिलती गाली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है!!