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अगस्त, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

देखा - सोचा

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क्षण भर सोचा मात्र क्षण भर सोचा की अभी अभी जो चेन स्नेचिंग हुयी उसके साथ नुक्कड़ के मुहाने और उसकी अपनी गली के सिरहाने पर क्या बता दे पुलिस को सोचा उस सोच को और देखा उस नजर को जो देखकर सोचेंगी कहाँ टिकी थी थी ये चेन ?? और फ़िर दूसरे ही क्षण ये सोचकर की चलो बस चेन स्नेचिंग ही हुई देखा घर का रास्ता !!

ऋषभ तुम्हारी याद में

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तब तक भयावह नहीं लगा ये वेंटीलेटर जब तक मेडिकल साइंस की सीमा रेखा पर ईश्वर के खड़े होने का भान लगा रहा इन्तजार भी भारी न था उस चमत्कार का की शायद हमारी दुआओं मन्त्र - श्लोकों ( की जिससे हम ईश्वर को जिंदा रखते हैं ) और माँ की गीली कातर आँखों का एक टुकडा भी वहां पहुँच सके जहां तुम ईश्वर की गोद में मुस्कुराते से लेटे थे और ईश्वर एक बार फिर इस वातानुकूलित कमरे में तुम्हारी साँसों को गर्म कर दे लेकिन इन भारी बड़ी मशीनों से तुम्हारे फूलते पिचकते सीने में भरा गया झूठ हमें वहां पहुंचा न सका जहां तुम ईश्वर की गोद में मुस्कुराते से लेटे थे तुम जिसने हमारे घर दरवाजे दीवारों पर खिलखिलाहट पोती थी तुम जो अपनी पतली मुलायम उँगलियों के इशारे और हल्की मुस्कान में सीधे सच्चे और समझदार से दीखते थे तुम जो बड़ी आसानी से किसी की भी गोद में जा बैठते थे अब की तुमने ईश्वर को चुना शायद ईश्वर को तुम ज्यादा प्रिय थे

जब घर में आग लगा ली है

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बचपने में कुछ ऐसे ही फूटते है उदगार .... हर घर में बिन लादेन घुसा हर हाँथ में आज दुनाली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है ! हिन्दू मुस्लिम अगडे पिछडे दूरी बढ़ती ,बढ़ते झगडे बिन बात हमेशा रहे लड़े थी आदमजात कभी अपनी हमने कुछ और बना ली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है! रिश्तों की बधिया टूट गयी थी प्रेम की कलई छूट गयी दिल की गरमाई रूठ गयी मखमल से संबंधों पर अपने हमने पैबंद लगा ली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है ! अज्ञान अनीति का कान्धा ले बढ़ते जाते हैं धन काले रिश्वतखोरी और घोटाले घोटाले का चारा है और घोटाले की थाली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है! युग पोत मस्तूल रहे हैं हम संस्कृति को भूल रहे हैं हम विस्मृति में झूल रहे हैं हम पश्चिम के अर्जुन बानों पर बूढी सी देह टिका ली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है ! बढ़ती जाती है बेकारी भुखमरी गरीबी लाचारी छल कपट अनीति मारामारी कौवे को झूठा है प्यारा और सच को मिलती गाली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है!!

नए झुनझुनों से बहलाने आये हैं

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आज हमें इतिहास पढाने आये हैं वो हमको हमसे ही मिलाने आये हैं संभल संभल कर चलना सीखा जिससे उसी द्रोड़ को शिष्य बनाने आये हैं रिश्तों के भी दाम लगेंगे भाव बिकेंगे वो घर को बाज़ार बनाने आये हैं सुध बुध खोये इस बूढे बच्चे को नए झुनझुनों से बहलाने आये हैं बाँट रहे हैं अपना चश्मा अपनी भाषा ये समता का पाठ पढाने आये हैं विश्वग्राम की बात बताते फिरते हैं पर ये बंदरबांट में खाने आये हैं

बाज़ार

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अब घर में बाज़ार की आहट होती है क्या खरीद किसकी बिकवाली करते हो... दरवाजे पर दस्तक दी हौले हौले अन्दर आया सोफे पर बैठ गया हाल चाल पूछा अपनों का फिर सलाह दी नजले जुखाम से जाम नाक को ठीक करने की बिलकुल अजनबी न लगा जब उसने मेरी थाली में भात खाया बात करते करते बंगाल की! फिर चमकीले ग्रहों की कहानियां सुनाते सुनाते बच्चों के साथ सो गया उनके बिस्तर में रात भर हम बहस में रहे मै और मेरी बीवी उसके चमकीले कपडों और उजले रूप को लेकर उसकी बातों से टपकती तहजीब और आँखों का रेशमी रूमानीपन हमें दो खेमों में बाँट गया हम अलग अलग उसे प्यार करने लगे वो तो सुबह के अखबार ने बताया रात कई घरों में बाज़ार आया था !!