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कविता: कवि-तान: कविता- न!: क-वितान `कविता लिखने के लिए कवि होना ज़रूरी नहीं|’ ये ब्रह्म वाक्य मुझे एक `कविता: कल, आज, कल और परसों’ नामक भ्रामक गोष्ठी के दौरान मिला| भ्रामक इसलिए क्योंकि मैं इसके निमंत्रण पत्र/ सूचना को मोटापा कम करने की किसी जादुई मशीन का विज्ञापन समझ बैठा था और तत्काल उलट-पुलट कर कविता नामक किसी स्थूलकाय स्त्री को कमनीय काया में रूपांतरित हो जाने वाली तस्वीरें ढूँढने लगा था| तस्वीरें थीं मगर `कविता लिखने वालों’ की| यहाँ `कवियों’ की भी लिखा जा सकता था लेकिन ब्रह्मवाक्यों से मुखालिफ़त करना मेरी औकात में नहीं| इसे भी उसी श्रद्धा से देखता हूँ जिससे `आह से उपजा होगा गान’ को देखा गया| `कारण तात्कालिक है लेकिन प्रासंगिक है|’ कुशल-कवि-गुच्छ (जिसे प्रायोजक महोदय ने कविता-गुच्छ माने जाने की सिफारिश की|) जैसी किसी पुस्तक के विमोचन के अवसर (जिसे सबसे ज्यादा पुस्तक विक्रेता केंद्र ने भुनाया) पर हिन्दी के मूर्धन्य कवि ने खोला `जैसे समाजसेवा के लिए किसी न्यूनतम योग्यता की आवश्यकता नहीं होती, आप सत्ताईस माला की अट्टालिका में रहकर भी इसे `परफोर्म’ कर सकते हैं, अपराध करके भी `प्राय