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घूमते रहे

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सुख की कतरने चूमते रहे जाम-ए-गफलत पी लिया, झूमते रहे हर गली, हर सड़क बावस्ता अंगूठे के फिर भी किस चाह में घूमते रहे!!

पंजाब पुलिस अकादमी

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ये दीवार-ओ-दर-याद आएंगें, ये जमीं ये शजर याद आएंगें। वो तरतीब औ तालीम औ तहजीब जो सीखी हर्फ बा हर्फ शाम-ओ-सहर याद आएंगें। इश्क करना था सुना इंसा का शगल है, प्यार में झूमते ये जानवर याद आएगें। मुस्तफा औ रकीब औ सरपरस्त, भूल जाएं भी मगर याद आएंगें। कुछ पलों का साथ देकर जो चले, उम्र भर वो रहगुजर याद आयेंगें !!

थर्ड डिग्री बनाम तीसरी परम्परा

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अजीब पशोपेश है जी........ ये दो विचार हैं......... नेक हैं....... एक में हम चकड़धम चिल्लापुरी को प्यार से बैठाते हैं......... दारू शारू.......... मुर्गा ! फिर जब वो एक हाथ का तकिया लगाए अधलेटा सा होता है तब स्नेह की चाशनी में सराबोर प्रश्न के बीड़े उसकी ओर सरकाते हैं......... श्रीमान चकड़धम चिल्लापुरी जी फलाना मर्डर केस में आप भी तो थे ना ...... हे हे और कौन-कौन था जी आपके साथ प्लीज बताइये ना ...... कैसे किया जी मर्डर और चाकू कहॉं छिपा रक्खा है ..... कुछ तो बोले जी। एक और भी विचार (तरीका) है..... थोड़ा पुलिसिया है जनाब...... इसमें सबसे पहले तो चकड़धम चिल्लापुरी को उल्टा..... फिर तेल पिये हुए डन्डे..... और फिर -अबे- सच-सच बता-ये मर्डर कैसे किया @और कौन-कौन थे तेरे साथ,@चाकू कहॉं छिपा आया!जहाँ -जहाँ @ है वहॉं-वहॉं मातृ पक्ष के लोगो के लिए सशस्त्र सलामी है । दोनो ही तरीके अतिवादी हैं दोनो ही अजीब हैं पहले से केस ही नही खुलता.... दूसरे से केस के अलावा जाने क्या-क्या खुल जाता है। जॉंचें,डिपार्टमेन्टल इन्क्वाइरी, और जाने क्या-क्या। पुलिस की फजीहत दोनो से है। एक जो अच्छी छवि के लिए ईजाद किया गया ह

यहीं है राजभाषा !!

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छत भी हिन्दी ,छप्पर हिन्दी बाना हिन्दी ,बिस्तर हिन्दी .... संसदीय राजभाषा समिति की तीसरी उपसमिति द्वारा २८ जनवरी २००५ को मुख्यालय का दौरा करने के सम्बन्ध में बैठक ...मुख्यालय के अधिकारियों की बैठक ! कार्यवृत्त का ढांचा ही गलत ..भाषा की गलतियां ..वाक्यों की गलतियां ! अधिकारियों की अनुपस्थिति उनके हिंदी (राजभाषा ) के लिए प्रतिबद्धता के स्तर को बताती हुई !जो आये भी हैं वो महज इसलिए की उन्हें अभी सीखना है ....की खानापूरी कैसे की जाती है !सभी अंग्रेजीदां ...मजे की बात ..कोइ भी क्षेत्रीय भाषा का प्रतिनिधित्व नहीं करता ..हिंदी विरोध के लिए सभी अंगरेजी का करते हैं ! लगता है की हिंदी का मजाक उडाने के लिए बैठक है !सभी हंसते हैं ..अगर कोई तीन चार से ज्यादा शब्द एक वाक्य में लाता है हिंदी के ...तो मुस्कुरा कर स्वागत होता है ..हंसकर स्वागत होता है ! विचार विमर्श की हिंदी का प्रयोग कैसे बढे ?...नहीं वरन ये की महज १५ दिनों में आंकडों की फेरबदल कैसे हो ...कितनी धूल झोंकने से निरीछ्कों को बेवकूफ बना सकते हैं ? सुझाव ...फाइलों के ऊपर नाम हिंदी में हों ...रबर की मुहरें हिंदी में ...हिंदी किताबों की खरीद

देखा - सोचा

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क्षण भर सोचा मात्र क्षण भर सोचा की अभी अभी जो चेन स्नेचिंग हुयी उसके साथ नुक्कड़ के मुहाने और उसकी अपनी गली के सिरहाने पर क्या बता दे पुलिस को सोचा उस सोच को और देखा उस नजर को जो देखकर सोचेंगी कहाँ टिकी थी थी ये चेन ?? और फ़िर दूसरे ही क्षण ये सोचकर की चलो बस चेन स्नेचिंग ही हुई देखा घर का रास्ता !!

ऋषभ तुम्हारी याद में

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तब तक भयावह नहीं लगा ये वेंटीलेटर जब तक मेडिकल साइंस की सीमा रेखा पर ईश्वर के खड़े होने का भान लगा रहा इन्तजार भी भारी न था उस चमत्कार का की शायद हमारी दुआओं मन्त्र - श्लोकों ( की जिससे हम ईश्वर को जिंदा रखते हैं ) और माँ की गीली कातर आँखों का एक टुकडा भी वहां पहुँच सके जहां तुम ईश्वर की गोद में मुस्कुराते से लेटे थे और ईश्वर एक बार फिर इस वातानुकूलित कमरे में तुम्हारी साँसों को गर्म कर दे लेकिन इन भारी बड़ी मशीनों से तुम्हारे फूलते पिचकते सीने में भरा गया झूठ हमें वहां पहुंचा न सका जहां तुम ईश्वर की गोद में मुस्कुराते से लेटे थे तुम जिसने हमारे घर दरवाजे दीवारों पर खिलखिलाहट पोती थी तुम जो अपनी पतली मुलायम उँगलियों के इशारे और हल्की मुस्कान में सीधे सच्चे और समझदार से दीखते थे तुम जो बड़ी आसानी से किसी की भी गोद में जा बैठते थे अब की तुमने ईश्वर को चुना शायद ईश्वर को तुम ज्यादा प्रिय थे

जब घर में आग लगा ली है

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बचपने में कुछ ऐसे ही फूटते है उदगार .... हर घर में बिन लादेन घुसा हर हाँथ में आज दुनाली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है ! हिन्दू मुस्लिम अगडे पिछडे दूरी बढ़ती ,बढ़ते झगडे बिन बात हमेशा रहे लड़े थी आदमजात कभी अपनी हमने कुछ और बना ली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है! रिश्तों की बधिया टूट गयी थी प्रेम की कलई छूट गयी दिल की गरमाई रूठ गयी मखमल से संबंधों पर अपने हमने पैबंद लगा ली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है ! अज्ञान अनीति का कान्धा ले बढ़ते जाते हैं धन काले रिश्वतखोरी और घोटाले घोटाले का चारा है और घोटाले की थाली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है! युग पोत मस्तूल रहे हैं हम संस्कृति को भूल रहे हैं हम विस्मृति में झूल रहे हैं हम पश्चिम के अर्जुन बानों पर बूढी सी देह टिका ली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है ! बढ़ती जाती है बेकारी भुखमरी गरीबी लाचारी छल कपट अनीति मारामारी कौवे को झूठा है प्यारा और सच को मिलती गाली है सीमा पर लड़कर क्या होगा जब घर में आग लगा ली है!!

नए झुनझुनों से बहलाने आये हैं

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आज हमें इतिहास पढाने आये हैं वो हमको हमसे ही मिलाने आये हैं संभल संभल कर चलना सीखा जिससे उसी द्रोड़ को शिष्य बनाने आये हैं रिश्तों के भी दाम लगेंगे भाव बिकेंगे वो घर को बाज़ार बनाने आये हैं सुध बुध खोये इस बूढे बच्चे को नए झुनझुनों से बहलाने आये हैं बाँट रहे हैं अपना चश्मा अपनी भाषा ये समता का पाठ पढाने आये हैं विश्वग्राम की बात बताते फिरते हैं पर ये बंदरबांट में खाने आये हैं

बाज़ार

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अब घर में बाज़ार की आहट होती है क्या खरीद किसकी बिकवाली करते हो... दरवाजे पर दस्तक दी हौले हौले अन्दर आया सोफे पर बैठ गया हाल चाल पूछा अपनों का फिर सलाह दी नजले जुखाम से जाम नाक को ठीक करने की बिलकुल अजनबी न लगा जब उसने मेरी थाली में भात खाया बात करते करते बंगाल की! फिर चमकीले ग्रहों की कहानियां सुनाते सुनाते बच्चों के साथ सो गया उनके बिस्तर में रात भर हम बहस में रहे मै और मेरी बीवी उसके चमकीले कपडों और उजले रूप को लेकर उसकी बातों से टपकती तहजीब और आँखों का रेशमी रूमानीपन हमें दो खेमों में बाँट गया हम अलग अलग उसे प्यार करने लगे वो तो सुबह के अखबार ने बताया रात कई घरों में बाज़ार आया था !!

धारा ३७७

एक विज्ञापन - सुन्दर, सुशील, गृहकार्य दक्ष बालक हेतु सरकारी सेवारत सजातीय वर चाहिए ... एक वार्तालाप - पापा , पापा कह रहे हैं आफिस से आते वक्त बाज़ार से चूड़ियाँ ले आना ... एक त्यौहार - भाई - भैया इस बार रक्षाबंधन पर क्या गिफ्ट लोगे ?... एक पहेली - बताओ तो तुम्हारे पप्पू चाचा के पत्नी तुम्हारे क्या लगे ? उत्तर - चीचा , चाचा , चोचो ??.... एक फिल्म - पत्नी पत्नी और वो ... एक गाना - राजा को राजा से प्यार हो गया .... ये कैसा सामाजिक बदलाव है ...अपसंस्कृति , मानवाधिकार , फ्रीडम आफ च्वाइस , या मात्र विचारों का संक्रमण काल जो व्यवहार के स्तर पर उतर चुका है !!

एक और प्रेम कविता

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क्या करें हमारे प्यार पर तो बाज़ार छा गया .... शर्की सल्तनत की आखिरी निशानी गिर चुके से ... खँडहर से खड़े खड़े किले की ऊबी दीवारों पर जब तुमने लिखा था हमारा नाम ये सोचा ना होगा की एक दिन हम 'बातवाला पीसीओ' के साइनबोर्ड के नीचे आ जाएंगे ॥ जिस पेड़ के पेट को छीलकर तुमने पान के पत्ते सा कुछ उकेरा था उसकी जड़ों के ऊपर अब .. टायरों के निशाँ हैं गिर चुके से खंडहर से खड़े खड़े किले की ऊबी दीवारों को देखने अब भी कुछ लोग आते हैं उनकी गाड़ियों के लिए पार्किंग लौट तो चाहिए !!

मेरी प्रेम कविता

मै ....फटे अखबारों की तरह उड़ता रहा यहाँ वहां तुम ...मखमली फाहों के मानिंद मुझे सहेजती रही !!

लोहिया -नरेश सक्सेना

लोहिया -नरेश सक्सेना (मृत्यु से एक वर्ष पूर्व लिखी गयी ) एक अकेला आदमी गाता है कोरस खुद ही कभी सिकंदर बनता है कभी पोरस युद्ध से पहले या उसके दौरान या उसके बाद जिरहबख्तर पहन कर घूमता है अकेला और बोलता है योद्धाओं की बोलियाँ -खाता है गोलियाँ भांग की या इस्पात की? देश भर में होता है चर्चा अपनी ही जेब से चलाता है -देश भर का खर्चा एक पेड़ का जंगल शिकायत करता है वहां जंगलियों के न होने की!! ("समय" स्वर्ण जयन्ती विशेषांक -१९७८ से साभार )

अर्नेस्तो कार्देनाल की कविताओं का अनुवाद

तीसरी किश्त कोस्टारीका में गाडीवान गाते हैं सड़कों पर मंदालिन लिए वे सफ़र में हैं . तोतों के रंग में रंगी गाडियां चलती हैं और रंगीन रिबन पहने बैल छोटी छोटी घंटियाँ टुन्न टुनाते और सींगो में फूल लगाए चलते हैं । जब यह कोस्टारीका में काफ़ी चुनने का वक्त होता है और कहवे से भरी गाडियां चलती हैं और वहाँ शहरी चौराहों पर बैंड बाजे बजते हैं सन जोन्स की बालकनियों और खिड़कियों पर लडकियां और फूल झूलते हैं लडकियां , बगीचों की तरफ़ बढ़ती हैं और प्रेसीडेंट सन जोन्स में पैदल चलता है !!

भ्रष्टाचार का गुणा गणित

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सरकारी अमलों में भ्रष्टाचार (यहाँ मुख्यतः रिश्वत की बावत प्रयुक्त )के सम्बन्ध में बहुत सी उक्तियाँ ,फब्तियां और सिद्धांत चलन में हैं .चिट्ठाकार स्वयं एक सरकारी मुलाजिम है लिहाजा भुक्तभोगी के साथ कुकर्मकरता भी है (प्राइवेट गमलों (बतर्ज़ अमलों )में भ्रष्टाचार का अध्यन फिर कभी )...आपकी जुगाली के लिए कुछ नियम परिनियम प्रस्तुत हैं - १ .अगर सही फंसेगा तो ना बचेगा ,अगर गलत फंसेगा तो साफ़ बचेगा. दूसरे शब्दों में- अगर पैसा कमाओगे और कहीं फंसोगे तो बच जाओगे और नहीं कमाया और फंसे तो नहीं बचोगे . २ भ्रष्टाचार तो भ्रष्टाचार है चाहे वो एक रूपये का हो या सौ का . ३ . स्केल - ४ . स्केल बहुतसे ??छोडे गए हैं.ये मेरी अपनी सीमा दर्शा रहे हैं.ज़रा नीचे के दो रिचटर स्केलों पर अपने को माप कर देखिये आपके अन्दर भष्टाचार का कितना भारी कम्पन है!!

वो नहीं आएंगी तुम्हे देखने -नागार्जुन

वो नहीं आएंगी तुम्हे देखने - नागार्जुन तुम तो नहीं गईं थीं आग लगाने तुम्हारे हाथ मे तो गीला चीथडा नहीं था. आँचल की ओट में तुमने तो हथगोले नहीं छिपा रखे थे. भूख वाला भड़काऊ पर्चा भी तो नहीं बाँट रही थी तुम, दातौन के लिए नीम की टहनी भी कहाँ थी तुम्हारे हाँथ में, हाय राम ,तुमतो गंगा नहा कर वापस लौट रही थी. कंधे पर गीली धोती थी,हाँथ में गंगाजल वाला लोटा था बी .एस .ऍफ़ . के उस जवान का क्या बिगाडा था तुमने? हाय राम,जांघ में ही गोली लगनी थी तुम्हारे ! जिसके इशारे पर नाच रहे हैं हुकूमत के चक्के वो भी एक औरत है! वो नहीं आयेगी अस्पताल में तुम्हे देखने सीमान्त नहीं हुआ करती एक मामूली औरत की जांघ और तुम शहीद सीमा -सैनिक की बीवी भी तो नहीं हो की वो तुमसे हाँथ मिलाने आएंगी! (मार्च ७४ में बिहार छात्र आन्दोलन के समय कर्फ्यू में एक महिला को गोली लगने के सन्दर्भ में लिखी गयी नागार्जुन की सीधी कविता जो जौनपुर से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका ”समय” के १५ जून १९७४ के अंक में प्रकाशित हुई थी.)

अर्नेस्तो कार्देनाल की कविताओं का अनुवाद

मै तुम्हे ये कवितायेँ देता हूँ :अर्नेस्तो कार्देनाल अनुवाद -नरेन्द्र जैन -अंततः :कविता का सिलसिला दूसरी किश्त हमारी कवितायेँ फिलहाल प्रकाशित नहीं हो सकतीं वे हाथों हाथ प्रसारित होती हैं पांडुलिपि या उनकी प्रतियाँ लेकिन एक दिन लोग उस तानाशाह का नाम भूल जाएंगे जिसके ख़िलाफ़ ये लिखी गईं थीं और कवितायेँ ,पढी जाती रहेंगी !! 2. हो सकता है इस साल हम विवाह कर लें मेरे प्यार और शायद हमें छोटा सा घर मिल जाए और हो सकता है मेरी कविता पुस्तक प्रकाशित हो जाए या हम दोनों विदेश यात्रा पर निकल पड़ें हो सकता है मेरे प्यार की इस साल सोमोज़ा का पतन हो जाए !!

अर्नेस्तो कार्देनाल की कविताओं का अनुवाद :

मै तुम्हे ये कवितायेँ देता हूँ :अर्नेस्तो कार्देनाल अनुवाद -नरेन्द्र जैन -अंततः :कविता का सिलसिला पहली किश्त अंततः ख्याल रक्खो क्लौडिया जब तुम मेरे पास होती हो क्योंकि हल्की सी जुम्बिश कोई शब्द क्लौडिया की एक आह कोई हल्की सी भूल शायद विशेषज्ञ एक दिन इसकी जांच करेंगे और क्लौडिया का यह नृत्य शताब्दियों तक याद रक्खा जाएगा !! 2 तुम जिसे मेरी कविताओं पर गर्व है इसलिए नहीं की मैंने इन्हें लिखा बल्कि इसलिए की वे तुम्हारी प्रेरणा थीं हालांकि वे तुम्हारे खिलाफ लिखीं गईं थीं तुम बहुत बढिया कविताओं को प्रेरित कर सकती थीं तुम बेहतर कविताओं को प्रेरित कर सकती थीं . अर्नेस्तो कार्देनाल स्पानी भाषा के महत्व पूर्ण कवि रहे हैं . कहीं हद्द तक एजरा पाउंड की कविताओं से समानता रखने वाली अर्नेस्तो की कवितायेँ उनके राजनीतिक विचारों का मुखर स्वर हैं . १९७९ में सोमोज़ा के खिलाफ क्रान्ति और तख्ता पलट की कार्यवाही हुई थी . अर्नेस्तो की कविताओं ने इस पूरे आन्दोलन को विचारात्मक आधार दिया था . अर्नेस्तो और उनकी कविताओं , विचारों के बारे में आपकी जानकारियाँ आमंत्रित हैं .
एक ख्वाहिश फकत रह गई आख़िरी अपनी भी कोई इक ख्वाहिश तो हो दाम मिलने को तो मिल जाएँ बहुत अपने जैसों की भी कभी नुमाइश तो हो ..... -सोचा था पता नही लोग कैसे लेंगे इस ब्लॉग को ...लेकिन टिप्पणियाँ पढ़कर अच्छा लगा! ऐसे ही मनोबल बढाते रहें ! गुरूजी वर्ड वेरिफिकेशन हटा दिया है... धन्यवाद
UPSCउपासक की वेदना अजीब मंदिर है ये भी! इतना विशाल की अन्दर आने में पूरा एक साल लगता है और मजे की बात की जरूरी नहीं की अन्दर आने ही दिया जाए! जब तक आप अपनी फूल मालाए , चढावे अक्षत आदि संभालते , एक दूसरे की धूल पसीने और दुर्गन्ध को झेलते झेलाते , कुछ क्रुद्धः कपि टाइप के लोगो की टांग खिचाई और टंगडी फंसाई से बचते बचाते दरवाजे तक पहुचते है की भड़ाक !दरवाजा बंद ...शो का टाइम ख़तम हुआ जैसा फिर बैठे आप कान खुजाइये और सर धुनिये की कलुए साले का तो चढावा भी कम था फिर कैसे अन्दर हो गया ? ये पहला मंदिर देखा मैंने जहां परिक्रमा पहले होती है मंदिर की दर्शन बाद में !चार परिक्रमाए चार मौके ..अन्दर जाने के लिए तीन दरवाजे भयंकर !पहले दरवाजे की हाईट थोडी कम है इसलिए बड़े बड़े अकडू जो झुकते नहीं ...इस महादेव के आगे सर नहीं नवाते भीड़ जाते है भड़ाक से ...फिर सर पर गूमर लिए घूमते है और इंतजार करते है दूसरी परिक्रमा ..दूसरी बार इस दरवाजे के खुलने का .ये दरवाजा थोडा चौड़ा है इसलिए बहुत से दर्शनार्थी लाँघ जाते हैं .दरवाजे पर दो घंटिया हैं ,दोनों में आपस में कोइ मेल नहीं ,बजानी दोनों पड़ती है .बज गयी तो वाह जी

कहाँ तक जाओगे ?

वो कहते है बहुत दूर तक नही जा पाउँगा ...पुलिस की नौकरी और ब्लॉग्गिंग ...देखते है ...

परिचय

ये एक अजीब सा ब्लॉग है ... यहाँ बिना किसी आशा ,प्रत्याशा के कहीं का ईंट कहीं का रोडा जोड़कर कुछ अपनी कुछ पराई परोसने का प्रयास है ... यहाँ कविता होगी ... कहानी होगी ...लेख होगा ..विचार होगा ...वो सब कुछ होगा की जिसके होने से जिंदा रहने का एहसास होता है ...तो पुनश्च ........ये जीवन की आशा और प्रत्याशा का कच्चा चिट्ठा है

समर्पण

नया कुछ अजब सा लिखूं कही कुछ गजब सा लिखूं दिल में समाए बस उतना लिखूं सिमटे न मुझसे मै क्या क्या लिखूं तुम्हारे लिए बस तुम्हारे लिए... तुम्हे दिल का पैगाम दूँ नया कुछ तुम्हे नाम दूँ कहानी पुरानी जनम से हमारे उसे एक अंजाम दूँ तुम्हारे लिए बस तुम्हारे लिए .... आओ नई एक दुनिया सजाए खडा हो जहाँ प्यार पलकें बिछाए छिटकी महक हो हँसी की खुशी की आँखे जहाँ मेरी प्यारे सपने सजाएं तुम्हारे लिए बस तुम्हारे लिए .... दिल में दबा लो ये जज्बात सारे मेरे मन को छू लो बस मन से तुम्हारे तुम्हे दू जमी के ये रोशन नजारे ला दू फलक से चमकते सितारे तुम्हारे लिए बस तुम्हारे लिए ....

shuruaat

hi