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ज़ख्म नए हैं टीस पुरानी

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बहुत दिनों से तरवताल खाली.. गुमसुम.. चुपचाप सा पडा रहा! इतना कुछ पढने को है ब्लॉग की दुनिया में कि लिखने का मौक़ा ही नहीं मिलता ..खैर ..आज अपनी एक पुरानी ग़ज़ल लगा रहा हूँ .. ज़ख्म नए हैं टीस पुरानी कैसे कहूं इसे नई कहानी ! दाग नहीं , तो पड़ जाएगा सूख चुका सब आँख का पानी ! किस्मत की लकीर पोंछ दूं हाँथ नहीं दिल की मनमानी ! आओ कुछ सामान जुटा लें हमें यहीं फिर राह बनानी ! मौला मेरी रज़ा पूछता कह देता दामन पेशानी !!