मुल्तवी


क्या ये महज इत्तेफाक था ..
मुझसे लगभग पांचवीं बार ये सवाल किया गया था
और मै निरुत्तर रहा हर बार
अपनी सारी सहानभूति निचोड़ने के बाद भी
मै उन्हें ये समझाने में असमर्थ था
कि
चमकीली तलवारों , ताज़ी राख के भभूतों और
चिलम से अलमस्त आँखों वाले बाबाओं
के लम्बे जुलूसों
(जिन्हें निकालने संभालने के लिए
पूरी सरकार
अपने सारे हथकंडों से तत्पर है
और यह समझाने के लिए
की सरकार का कोई धर्म नहीं होता
कागजी कार्यवाही पूरी पूरी है )
के आगे क्यों नहीं भेजा जा सकता
हालाँकि
मेरे पास इतना एक्सक्यूज है
की व्यक्ति की सुरक्षा देश की संप्रभुता एकता और
अखंडता के लिए
समानता का अधिकार
मुल्तवी किया जा सकता है थोड़ी देर के लिए ...
जुलूस के गुजर जाने तक .

टिप्पणियाँ

  1. आपकी कलम का तीखापन सोचने को बाध्य करता है।

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  2. mahakumbh, peshvai, naga babao ka hujum............sab sehsa aankhon ke aaghe ghum gaya.
    well done!congratulations on sucessfully completing such tedious duty.and also kudos for still maintaining to keep the poet in u alive,inspite of all odds.

    जवाब देंहटाएं
  3. हालाँकि
    मेरे पास इतना एक्सक्यूज है
    की व्यक्ति की सुरक्छा देश की संप्रभुता एकता और
    अखंडता के लिए
    समानता का अधिकार
    मुल्तवी किया जा सकता है थोड़ी देर के लिए ...
    जुलूस के गुजर जाने तक .

    अपनी कलम की तल्खियात को बरकरार रखें .....!!
    सुरक्छा को सुरक्षा कर लें ...!!

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  4. व्यवस्था से सवाल पूछती आपकी रचना ... पर बाहरी व्यवस्था इसका जवाब नही देगी ....

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  5. बहुत सार्थक कविता
    इसमें कड़वाहट नहीं व्यवस्था से उपजे प्रश्न है और ये मेरे अपने प्रश्न है.

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