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गुडी गुडी डेज़
सबकुछ अचानक हुआ था| जैसे गणेश जी दूध पी लिए|
जैसे दीवार पर साईं भगवान दिखने लगे| जैसे दुखिया के घर-आँगन में धन संपदा बरसने लगी और सुखिया के घर मल| वैसे ही किसी दिन अचानक ये अभूतपूर्व चमत्कार भी हो गया था| मूरत का तीसरा नेत्र बन आया था| ठीक माथे के बीचोबीच|
मुहल्ले के
पीछे, बाहर और भीतर के बीच वाली सीमा रेखा
पर एक पुराना खंडहरनुमा मन्दिर था जिसमें एक मूर्ती थी| आदमकद|
ज़्यादातर मूर्तियाँ वहां छोटी होने की वजह से ये अलग ही दिखती थी|
एक दिन ये चमत्कार हो गया था| मूर्ती के माथे पर
रातोंरात एक तीसरा नेत्र बन गया था| भौगोलिक रूप से मंदिर मुहल्ले के पीछे था लेकिन लगता यों था कि मुहल्ला मंदिर के पीछे हो| वैसे तब तक विज्ञान ये सिद्ध कर चुका था कि दुनिया गोल है| मुहल्ले के लोग विज्ञान के मुगालते में आ गए थे या सहज आलस्य की वजह से ये कहना ज़रा मुश्किल है लेकिन था यही कि वो इस आगे-पीछे के सिद्धांत में ज़्यादा सिर नहीं खपाते थे|
खंडहर नुमा गोल सा मंदिर था वो| मंदिर में दक्षिण, नागर और वेसर तीनों ही स्थापत्य शैलियों के इनग्रेडिएंट्स को बड़ी सफाई के साथ
गूंथा गया था| अब बस सफाई-सफाई रह गई थी|
इनग्रेडिएंट रेशियो के बारे में टिप्पणी किया जाना संभव नहीं था क्योंकि
टूट-फूट काफी हो चुकी थी| लेकिन इतना था
कि उसे देखकर `खंडहर बता रहे इमारत बुलंद थी’ जैसा कोई शे’र टप से निकल जाता था| मूर्तियाँ खंडित, मुंडित और टुन्डित हो चुकी थीं|
मंदिर निर्माण के जो कार सेवक थे अब उनके नाम के शिलालेख `गजोधर वल्द गंगादीन इक्यावन रुपया’ पर पीपल उग आये थे|
अब की स्थिति ये थी कि मुहल्ले के परित्यक्त टूटे भगवानों की मूर्तियां यहां रख दी जातीं|
ज़ाहिरा तौर पर किसी को यहाँ आने की मनाही नहीं थी लेकिन सब आते ही हों इसका इंतजाम भी कोई खास नहीं था| मुहल्ले से मन्दिर को एक पतला रास्ता
जाता था जिसमें झाड़-झंखाड़ बहुत था| इधर
लोगों ने सहूलियत के अनुसार इधर-उधर से बाई-पास बना लिए थे| मंदिर की दीवारों पर बहुत से नीति के दोहे, श्लोक जैसी भ्रम फैलाने वाली चीज़ें लिखी हुई थीं जिन्हें पढ़कर लोग ज़्यादा लोड नहीं लेते थे| ये चमत्कार उसी
मन्दिर में हुआ था|
घटना अद्भुद ही थी| बैठे-ठाले किसी मूर्ती के माथे पर तीसरा नेत्र बन जाना| ये चमत्कार गणेश जी के दूध पीने के बाद और मंकी मैन के आतंक के पहले की घटना है| लेकिन ये पहले और बाद की बात समय से नहीं श्रद्धा के स्तर की बात है| हुआ यों कि एक दिन अमृत लाल
`अनोखे’ मन्दिर गए थे किसी काम से| न उन्हें पूजा करनी थी और, जैसे वो थे, न ही उनकी पूजा होनी थी| तो यही तय माना जाय कि वो
`किसी’ काम से ही गए थे| जैसे डीडीएलजे में राज चर्च में गया था किसी काम से और लौटकर सिमरन को कोई
और कारण बताया था| अनोखे उस कारण से गए थे या उस काम से,
गॉड नोज़| लेकिन लौटे भागते हुए कि जैसे वहां कोई
भूत देख लिया हो और गुजराती में चीखने लगे `ऊंहा मंदिरवा में
मूरतिया को एक ठो आँख निकल गवा है|’ ऐसी चामत्कारिक बात चाहे
जिस भाषा में भी कही जाए लोग समझ जाते हैं| भक्ति के मामले में
लोगों का ट्रान्सलेशन और ट्रान्सलिटरेशन चकाचक है| लोग जुट गए|
अनोखे की नब्ज़ देखी गई| सरपट थी, लेकिन थी| दो उँगलियों से आँख की पुतलियाँ खोली गईं|
विस्फारित थीं, लेकिन लाल नहीं थीं| जीभ निकालने को कहा गया| अनोखे माहिर थे| पूरी ज़ुबान लटका कर रख दी| काली थी, पर दुरुस्त थी| ब्रीथ एनालाइज़र लगाया गया| मतलब किसी ने अपनी नाक आगे की और अनोखे ने कहा हा...! बदबू थी, लेकिन शराब की नहीं| निष्कर्ष
निकला कि अनोखे तबियत, होश और हवास के शेप-वन फॉर्म में हैं| निर्णय हुआ कि अभी, तत्काल मन्दिर चला जाए| वैसे भी `समय बिताने के लिए करना है कुछ काम’ मोड में रहते ही थे लोग| मौक़ा मिला घनघना उठे|
एक हुजूम चल पड़ा मंदिर की ओर|
इस अद्भुद घटना पर अपने-अपने विचार और एक दूसरे
के साझा भाव के साथ बढ़ चला| चूंकि विचारों की संख्या लोगों की
संख्या के कई गुना ज़्यादा थी इसलिए उन्हें मोटे तौर पर मौलिक प्रश्नों के तीन स्तरों
में विभाजित किया जा सकता है| नेत्र बन तो गया पर क्या ये कभी खुल भी सकता है? चलो माना खुल भी गया पर क्या ये हमारी समस्याओं
को देख भी सकता है? चलो माना देख भी लिया तो क्या समस्याओं का निदान भी कर सकता है? इसमें `चलो माना’ एक दूसरे के साथ साझा भाव था|
दउ गरजै लागेन ( देवता गर्जना कर
रहे हैं )
मन्दिर की छटा, छंटे हुए लोगों की वजह से ही शायद, भव्य हो उठी थी|
गोपुरम से गर्भ गृह तक झंडियाँ लटक गई थीं, ऐसा
भाव लोगों के मन में आया| एक तरफ एक ऑटोमैटिक डुगडुगी रक्खी हुई
थी जिसे दो डंडियाँ एक निश्चित समयांतराल पर बजा रही थीं उसे डंका समझा गया|
उसकी आवाज़ तीनो लोकों में गूँज रही थी| ऐसा भाव
भी लोगों के मन में ही आया| भक्ति के क्षेत्र में `भाव’ प्राइमरी तत्व है| मुख्य द्वार
पर सिकड़ी से बंधा एक घंटा लटका हुआ था| सिकड़ी से लटकी हुई चीज़
को बजा देना चाहिए ऐसे भाव के साथ लोग एक हाथ उठाए चले आ रहे थे| कपाट खुले हुए थे| दूर से ही भगवान की एक विराट छवि दिखने
लगी| दूर से ही दिखने लगा कि माथे के ठीक बीचोबीच त्रिपुंड वाले
स्थान पर वर्टिकली एक आँख उभर आई थी|
लोग दौड़ पड़े| धक्का-मुक्की होने
लगी| अव्यवस्था देखकर जब यूं लगा कि कहीं देव आँखें ही न बन्द
कर लें आपसी सहमति से, जिसमें आपसी ज़्यादा था सहमति कम,
ये तय किया गया लाइन बना ली जाए| बन गई|
कुछ स्वयं के सेवकों ने, स्वयंसेवक की भूमिका धर
ली| महज़ अनुशासन बनाने को, इसे दो बार कहा
जाए, महज़ अनुशासन बनाने को, डंडे पकड़ लिए|
सीटियाँ लटका लीं और माथे पर `जै माता दी’
का पटका, वैसे वो देव सेवक थे लेकिन उस समय कोई
और अवलेबल नहीं था, बाँध लिया|
अपने-अपने
विचार और कॉमन भाव के साथ पहला जत्था मत्था टेक ही रहा था कि चमत्कार हो गया| भगवन ने भक्तों के भाव और विचार दोनों सुन लिए| बिना होठ हिले मूर्ती से आवाज़ आई| `भक्तजनों...’
अद्भुद! देव बोल उठे|
लोग इतने पर ही दंडवत होने को हुए| स्थानाभाव की
वजह से लोग जिस मुद्रा में आए उसके स्पष्ट वर्णन के लिए भाषा तद्भव की तरफ ले जानी
पड़ेगी इसलिए रहने देते हैं| देव आगे बोले `दुःख है| दुःख का कारण है|
दुःख का कारण है... दुःख का कारण है...’ तीन बार इसी मनके पर अटकने के बाद बोले `दुःख का कारण है तू खुद!
खुद को उलट दुःख दूर हो जाएगा।’
जाने इस आरोप रूपी तत्वज्ञान से
अथवा भावना
में आँखें भर आने की नीति के अनुपालन में, आँखें भर आईं लोगों की| बहुत देर तक लोग हाथ जोड़े भाव विह्वल खड़े रहे| फिर किसी को याद आया कि उनका जन्म मांगने के लिए हुआ है और वरदान ऐसी चीज़ है जो भगवान के पास ऑलमोस्ट रेडीमेड रहती है उन्होंने हाथ फैला दिए| ये जानते हुए कि नौकरी कोई चूरन की गोली थोड़ी न है कि भगवान तथास्तु कहें, हवा में हाथ घुमाएं और एक भूरे रंग की पुड़िया थमा दें| पर चूंकि हमाम नंगों का था और कोई कपड़े पहनकर शॉवर नहीं
लेता था इसलिए इस जैसी बहुत सी गुहारों के बीच
`हम कैसे कारण हैं?’ की जगह मुलायम सा सवाल भी
आया `अब हम क्या करें?’
जवाब में देव वाणी पूरी खनक के साथ गूंजी `मेरे सुख सब तेरे, तेरे दुःख अब मेरे| बस तू इतना कर कि अपनी पूजा सम्भाल, अर्चना दुरुस्त कर, भजन के सुर उठा, कीर्तन के ताल मिला| बस इतना सा काम कर ले बाकी सब मुझपर छोड़ दे|’
इस वाक्य के बाद तीसरी आँख एक झटके से बंद हुई, वाणी को विराम लगा और वातावरण में जाने कहाँ से एक वंशी की धुन गूंजने लगी|
स्वयंसेवकों ने इशारा जानकर मिलने का समय समाप्ति की घोषणा वाला गोंग
बजा दिया|
जी तो नहीं भरा था लोगों का लेकिन लौटना पड़ा| मन की सारी बात भी भगवन से कह नहीं पाने का मलाल था| सब लौटे तो शुद्धता के पैमाने पर मोटा-मोटी तीन श्रेणी के चेले
बन गए| पूर्ण शुद्ध चेले,
जो देव और उनके चमत्कार को सौ टका मानते थे| इनकी पांच से ज़्यादा इन्द्रियाँ समर्पित थीं| अपूर्ण शुद्ध चेले, जो चमत्कार वाले एडिशन की वजह से इधर सरक आए थे| तीन चौथाई से चार चौथाई तक का मामला था इनका| अशुद्ध चेले, वो जो चेले तो थे लेकिन उनके लिए देव का चेहरा बदल जाता था|
कई दिनों तक मुहल्ले में आपा-धापी रही| यद्यपि भगवान ने सब सरल शब्दों में कहा था लेकिन भावानुवाद में उलझन रही| फिर जब प्रथम श्रेणी के चेलों और उनके दाहिने हाथ स्वयं सेवकों ने अनुवाद का चार्ज ले लिया तो धीरे-धीरे सेटल होने लगा मामला| किसी की बिटिया की शादी न होती तो सलाह देते कि पीले की जगह सफ़ेद फूल चढ़ाओ| किसी की नौकरी चली जाती तो कहते अपने `नि’ पर हल्का सा कम्पन लाओ| कोई बीमार पड़ता तो इनसे खंजड़ी की ट्रेनिंग लेने लगता| किसी की फसल सूख जाती तो कहते सूर्य को जल देते समय लोटा पैंतालीस डिग्री पर झुकाओ|
तबले, हारमोनियम और लाउड स्पीकर वालों के भाव बढ़ गए| मुहल्ले के लौंडे गिटार और डिस्को लाइट भी लाना चाहते थे लेकिन इतने अभिनव प्रयोग की छूट नहीं मिली| प्रसाद के क्षेत्र में मौलिक प्रयोग हुए| यद्यपि भगवान ने अपनी फूडिंग हैबिट्स नहीं बताई थीं तथापि लोगों को उनके हुलिए और हाव-भाव से नजदीकी अनुमान के आधार पर भांग-धतूरे की नई-नई रेसिपी ट्राई करने का सुझाव मिला|
जब इस बात की पूरी स्थापना हो गई कि भक्ति के क्षेत्र में ‘सुझाव’, वो भी भक्त और भगवन के बीच पुल, सीढ़ी या रस्सी पकड़ के खड़े स्वयं सेवकों का, द्वितीयक कड़ी और भाव का इमीडिएट जूनियर तत्व है एक दिन फिर ख़बर आई कि आज देव दुबारा अपने विराट रूप में आने वाले हैं|
दउ बरसै लागेन ( देवता बरस रहे हैं )
इस बार अवश्य अपने मन की बात भगवन से कह के रहेंगे| इस भावना के साथ पुनः पूरे मुहल्ले का जुलूस मन्दिर पहुंचा और लगभग इसी भावना के साथ देव ने अपनी तीसरी आँख खोली एक नज़र अपने भक्तों पर फिराई, मुग्ध हुए और बोले `मैं जानता हूँ आपकी तकलीफें ज़्यादा हैं| थोड़ा समय लगेगा| मेहनत लगेगी| अलसस्य कुतो विद्या अविद्स्य कुतो धनं अधनस्य कुतो मित्रं
मित्रस्य कुतः सुखं !! इसलिए देखिये कि आप कहाँ चुक गए, कहाँ चूक रहे हैं सो कंसन्ट्रेट ऑन योर कुतः|’ इस बार तीसरी आँख और
देववाणी एक साथ ही बंद हुई|
बात बहुत आसान थी समझने के लिए
लेकिन कन्फ्यूजन और बढ़ गया| जाने अनुवाद की वजह से या फिर भगवान
के प्रोननसियेशन की वजह से कहना मुश्किल है लेकिन कुतः का कुत्तह हो गया|
मुहल्ले में कुत्तों की डिमांड भयानक रूप से बढ़ गई| खासकर आलसी, अज्ञानी और निर्धन कुत्तों की| लोग अँधेरे में निकलते और जहां कोई कुत्ता दिखता चुपचाप उठा लेते| गलियाँ सूनी हो गईं| जहां पहले ये आलम था कि सड़क,
गली और मकान अपने नाम-नम्बर से ज़्यादा वहां विचरते
कुत्तों की अलहदा भौं के लिए पहचाने जाते थे अब स्थिति ये आ गई कि लोग दिन दहाड़े रास्ता
भटकने लगे| अपने ही दोस्त के कुत्ते पर गिद्ध दृष्टि रखने लगे
लोग| मौक़ा मिलते ही उठा लेते| दोस्तों से
ही अपने कुत्ते छुपाने
लगे लोग| एक दिक्कत ये हुई कि कुत्तों को तो
कुछ मालूम था नहीं इसलिए वो आदमियों से ज़्यादा कन्फ्यूज़ हो गए| उन्हें अपने मालिक की पहचान और इलाके का परिसीमन बार-बार बदलना पड़ता| जिसकी वफ़ा की कसमें भौंकी थीं उसपर गुर्रा
उठते| जिनपर भौंकना चाहिए उन्हें चाटने लगते|
चूंकि हर सिक्के का दूसरा पहलू
होता है और ये शोले के जय का सिक्का नहीं था इस बात का दूसरा पहलू ये बैठा कि मुहल्ले
में कई डॉग केयर सेंटर खुल गए| जिन्होंने बहुत से लोगों को रोज़गार
दिया, जिन्होंने और कुत्ते खरीदे जिससे और डॉग केयर सेंटर खुले|
कुछ ही दिनों में ऐसा लगने लगा कि ये मुहल्ला कुत्तों का है और इसमें
आदमी भी रहते हैं| दबे शब्दों में कुत्तों ने मुहल्ले में अपनी
संख्या को देखते हुए इसका नाम गुडी गुडी से डुगी डुगी करवाने का प्रस्ताव भी लाना चाहा
था लेकिन भाषा की दिक्कतों की वजह से इस बात के प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं| लेकिन देव चूंकि कई रूपों में आते-जाते रहते हैं इसलिए
उन्हें भनक लग गई और कुछ ही दिनों में देव को पुनः अपने विराट रूप में आना पड़ा|
कहते हैं कि इस बार लोगों से ज़्यादा कुत्तों की कन्फ्यूज़न दूर करने के
लिए|
दउ फाट पड़ेन
(इसका मतलब देवता से ही पूछा जाए)
इस बार देव की आँखे, नीचे वाली दो, थोड़ी नम देखी गईं| उन्होंने लगभग शून्य में देखते हुए अस्पष्ट सा कुछ कहा जिसे प्रथम श्रेणी के चेलों ने इन शब्दों में स्पष्ट किया `जब सूरज मद्धम होने लगे और चांद जलने लगे, आसमान पिघल उठे तुम्हें लगे कि तुम ठहरे हुए हो लेकिन ज़मीन चल पड़ी है बस! उसी वक्त, उसी
जगह तुम्हें
खजाना और चाबी का कॉम्बो पैक मिल जाएगा|’
जितनी देर में भक्त लोग इस बात को कह-समझ पाते
देव ने बस उतना इंतज़ार किया और फिर तीसरा नेत्र और वाणी बंद कर ली|
उदास तन, क्योंकि इतना भाग-भाग कर जाने के बाद भी अपनी गुहार का
नम्बर नहीं आया था, और मुदित मन, क्योंकि
खज़ाने का क्लू मिल गया था, लोग लौटे| रोजाना
वो टकटकी बांधे इंतज़ार करते सूरज डूबने का| ऐसे संयोग का,
कि कभी सिंदूरी शाम और चांद एक साथ हो| कभी ऐसा संयोग होता कि हल्के-हल्के सूरज के साथ चाँद दिख भी जाता तो आसमान के गलने पिघलने की सूरत न बनती| फिर एक दिन जिसे शास्त्रों में सियार-सियारिन विवाह योग कहा गया है उसके आस-पास का योग बना| शाम सूरज डूबने से पहले चाँद निकल आया आसमान में और बारिश होने लगी| देखते ही देखते बारिश तेज़ हुई और परनाले से बहने लगे| उस बहाव में गली-सडक-रस्ते की मिट्टी भी बहने लगी| बस फिर क्या था| चेलों द्वारा सुझाया वही पवित्र मौक़ा आ गया| लोगों ने खजाने और चाभी की खोज प्रारम्भ कर दी| फावड़े कुदाल उठाए और खुदाई चालू| जो जहां था वहीं खोदने लगा|
थोड़ी ही देर में ये बताना मुश्किल था कि महल्ले में गड्ढे हैं या गड्ढे
में मुहल्ला| बभनौटी, चमरौटी, कैथान, ठकुरान मुहल्ले में पहले से मौजूद इन टीलों के
बीच इतने गड्ढे बन गए कि चलने से ज़्यादा लोग लुढ़कने लगे| त्रिवेदी
जी निकलते चौबे जी से मिलने लुढ़क कर दूबे जी के घर पहुंच जाते| लोग पता बताते तो ऐसे तीन गड्ढे छोड़कर बाएं मुड़कर दूसरे टीले पर तीसरा मकान|
इतना गड्ढापना तो बिजली, सीवर, पानी, टेलीफोन विभागों के सम्मिलित प्रयासों से भी नहीं
हो सकता था|
चलना मुहाल हुआ तो लोगों के बीच
खुसुर-पुसुर होने लगी| एकाध खुसुर या पुसुर
जज़्बाती कमज़ोरी की वजह
से कभी लाउड हो जाती तो स्वयं सेवक और प्रथम श्रेणी के चेले दोनों हरकत में आ जाते
और भावना चढ़ा के कमजोरी दबा दी जाती| उन्हीं दिनों भक्ति के क्षेत्र
में `दबाव’ की तीसरे लेकिन सबसे मजबूत अवयव
के रूप में प्राण प्रतिष्ठा हुई|
ये कहना गलत है कि किसी को खजानी तक नहीं मिली| जिनके गड्ढे गड्ढे रहे वो गड्ढे में ही रह गए| कुछ ने बराबर खुदाई से कुँए बना लिए वो अब कुँए में हैं| लेकिन जिन्होंने गड्ढों में सुरंगे बना लीं कहते हैं वो खजाना लेकर पार हो गए| तब से लेकर आज तक मुहल्ले के
पीछे, बाहर और भीतर के बीच वाली सीमा रेखा
पर वो पुराना खंडहरनुमा मन्दिर बरकरार है| मूरत भी है|
आँख भी| लोग भी पूरी श्रद्धा और थोड़े-बहुत स्वार्थ से चमत्कार के इंतज़ार में वहां आज भी जाते हैं और वंशी की धुन
सुनकर वापस लौट आते हैं|
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