नए झुनझुनों से बहलाने आये हैं

आज हमें इतिहास पढाने आये हैं
वो हमको हमसे ही मिलाने आये हैं
वो हमको हमसे ही मिलाने आये हैं
संभल संभल कर चलना सीखा जिससे
उसी द्रोड़ को शिष्य बनाने आये हैं
रिश्तों के भी दाम लगेंगे भाव बिकेंगे
वो घर को बाज़ार बनाने आये हैं
सुध बुध खोये इस बूढे बच्चे को
नए झुनझुनों से बहलाने आये हैं
बाँट रहे हैं अपना चश्मा अपनी भाषा
ये समता का पाठ पढाने आये हैं
विश्वग्राम की बात बताते फिरते हैं
पर ये बंदरबांट में खाने आये हैं
सुध बुध खोये इस बूढे बच्चे को
जवाब देंहटाएंनए झुनझुनों से बहलाने आये हैं
बड़ा रोचक बढ़िया अंदाज उम्दा प्रयास . लिखते रहिये .
भई वाह पूरी ग़ज़ल लाजवाब.
जवाब देंहटाएंसंभल संभल कर चलना सीखा जिससे
उसी द्रोड़ को शिष्य बनाने आये हैं
रिश्तों के भी दाम लगेंगे भाव बिकेंगे
वो घर को बाज़ार बनाने आये हैं
सुध बुध खोये इस बूढे बच्चे को
नए झुनझुनों से बहलाने आये हैं
आनन्द आ गया अमित भाई. वाह्
bahut sundar........
जवाब देंहटाएंविश्वग्राम की बात बताते फिरते हैं
जवाब देंहटाएंपर ये बंदरबांट में खाने आये हैं
उम्दा रचना
बेह्तेरेइन,उम्दा,लाजवाब ,यूही लगे रहिये..............
जवाब देंहटाएंरिश्तों के भी दाम लगेंगे भाव बिकेंगे
जवाब देंहटाएंवो घर को बाज़ार बनाने आये हैं
Bahut khub likha hai.Badhai.