'बाहर मैं... मैं अंदर...' --------------------------- 'मैं अंदर...' हिस्से की जो कविताएँ हैं, वे कवि के गहरे आत्मचिंतन से उपजी हैं। स्वयं को जानने की जिज्ञासा जैसा गूढ़ विषय, कविता के परंपरागत विषयों से सर्वथा भिन्न है, लेकिन व्यंजना में कवि का आशय बहुत कुछ कह जाता है। वैसे तो यह विषय मानवीय या उससे अधिक लगभग दार्शनिक सा विषय है, लेकिन ऐसा विषय होते हुए भी अपने भाषिक प्रयोगों के माध्यम से कवि अनकहे को भी कहने की सामर्थ्य रखता है। भाषा और नए प्रतीकों के प्रयोग से कवि अपने भावों को प्रवाह में उद्घाटित करता चला जाता है। आत्म से साक्षात्कार की यह कविता कवि के गहन अंतर्द्वंद्व से उपजी है। वह सहज है, सरल है। अतः दुनियावी अर्थों से एकदम कदमताल नहीं मिला पाता। जीवन- उद्देश्यों को काव्य रूप देकर वह वृहद् आधार प्रस्तुत करता है। आत्म की पहचान और स्वातंत्र्य-अनुभूति उसकी मूल मनोवृत्ति है। उसी को पाने की जद्दोजहद में उसके हृदय से कविता निःसृत हुई है। आधुनिक जीवन शैली के दबावों से मानव संवेदना पर जो कुछ भी असर हुआ है, उसी की प्रतिक्रिया में यह कविता प्रस्फुटित हुई है। यह कवि...
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बाज़ार
अब घर में बाज़ार की आहट होती है क्या खरीद किसकी बिकवाली करते हो... दरवाजे पर दस्तक दी हौले हौले अन्दर आया सोफे पर बैठ गया हाल चाल पूछा अपनों का फिर सलाह दी नजले जुखाम से जाम नाक को ठीक करने की बिलकुल अजनबी न लगा जब उसने मेरी थाली में भात खाया बात करते करते बंगाल की! फिर चमकीले ग्रहों की कहानियां सुनाते सुनाते बच्चों के साथ सो गया उनके बिस्तर में रात भर हम बहस में रहे मै और मेरी बीवी उसके चमकीले कपडों और उजले रूप को लेकर उसकी बातों से टपकती तहजीब और आँखों का रेशमी रूमानीपन हमें दो खेमों में बाँट गया हम अलग अलग उसे प्यार करने लगे वो तो सुबह के अखबार ने बताया रात कई घरों में बाज़ार आया था !!
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कुछ पलों का साथ देकर जो चले,
जवाब देंहटाएंउम्र भर वो रहगुजर याद आयेंगें !!
bahut achche... really
बहुत अच्छा अधिकार है आपका. ग़ज़ल अच्छी लगी, खासकर ये शेर -
जवाब देंहटाएंइश्क करना था सुना इंसा का शगल है,
प्यार में झूमते ये जानवर याद आएगें।
बेहतरीन। बधाई।
जवाब देंहटाएंसमेट लो इन नाजुक पलों को
न जाने ये लम्हें कल हो ना हो।
ग़ज़ल के शेर और पुलिस का दिल क़यामत का मेल है
जवाब देंहटाएंछोटे भाई के एक बैचमेट अनायास याद आ गए हैं, यशवंत. राज्य पुलिस सेवा के प्रशिक्षण के दौरान इसी तरह उर्दू के अदब से परेड ग्राउंड को मीठा बनाये रखते थे. अब पता नहीं दस साल तक पुलिसिया कार्यों के कारण कैसे होंगे. आपके इन खूबसूरत शेर के साथ कल फोन करता हूँ.
देखा किए इक जल्लाद हर वर्दी वाले में
जवाब देंहटाएंअब तो ये हर्फ-ए-दिलावर याद आएँगे।
हाँ बस ऐसे ही अल्फाज़ ..दिल को छू जाते हैं ।
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