एक ख्वाहिश फकत रह गई आख़िरी

अपनी भी कोई इक ख्वाहिश तो हो

दाम मिलने को तो मिल जाएँ बहुत

अपने जैसों की भी कभी नुमाइश तो हो .....

-सोचा था पता नही लोग कैसे लेंगे इस ब्लॉग को ...लेकिन टिप्पणियाँ पढ़कर अच्छा लगा! ऐसे ही मनोबल बढाते रहें !

गुरूजी वर्ड वेरिफिकेशन हटा दिया है...

धन्यवाद

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