लोहिया -नरेश सक्सेना

लोहिया -नरेश सक्सेना
(मृत्यु से एक वर्ष पूर्व लिखी गयी )


एक अकेला आदमी
गाता है कोरस
खुद ही कभी सिकंदर बनता है
कभी पोरस
युद्ध से पहले या उसके दौरान या उसके बाद
जिरहबख्तर पहन कर
घूमता है अकेला
और बोलता है योद्धाओं की बोलियाँ
-खाता है गोलियाँ
भांग की या इस्पात की?
देश भर में होता है चर्चा
अपनी ही जेब से चलाता है
-देश भर का खर्चा
एक पेड़ का जंगल
शिकायत करता है वहां जंगलियों के न होने की!!

("समय" स्वर्ण जयन्ती विशेषांक -१९७८ से साभार )

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