UPSCउपासक की वेदना

अजीब मंदिर है ये भी! इतना विशाल की अन्दर आने में पूरा एक साल लगता है और मजे की बात की जरूरी नहीं की अन्दर आने ही दिया जाए! जब तक आप अपनी फूल मालाए , चढावे अक्षत आदि संभालते , एक दूसरे की धूल पसीने और दुर्गन्ध को झेलते झेलाते , कुछ क्रुद्धः कपि टाइप के लोगो की टांग खिचाई और टंगडी फंसाई से बचते बचाते दरवाजे तक पहुचते है की भड़ाक !दरवाजा बंद ...शो का टाइम ख़तम हुआ जैसा फिर बैठे आप कान खुजाइये और सर धुनिये की कलुए साले का तो चढावा भी कम था फिर कैसे अन्दर हो गया ?
ये पहला मंदिर देखा मैंने जहां परिक्रमा पहले होती है मंदिर की दर्शन बाद में !चार परिक्रमाए चार मौके ..अन्दर जाने के लिए तीन दरवाजे भयंकर !पहले दरवाजे की हाईट थोडी कम है इसलिए बड़े बड़े अकडू जो झुकते नहीं ...इस महादेव के आगे सर नहीं नवाते भीड़ जाते है भड़ाक से ...फिर सर पर गूमर लिए घूमते है और इंतजार करते है दूसरी परिक्रमा ..दूसरी बार इस दरवाजे के खुलने का .ये दरवाजा थोडा चौड़ा है इसलिए बहुत से दर्शनार्थी लाँघ जाते हैं .दरवाजे पर दो घंटिया हैं ,दोनों में आपस में कोइ मेल नहीं ,बजानी दोनों पड़ती है .बज गयी तो वाह जी वाह नहीं तो फिर घूमो !
अगला दरवाजा अचानक बहुत ही संकरा हो जाता है ..कुछ ही तीस मार खान इससे पार हो पाते हैं ।घंटियाँ भी यहाँ एक से एक बड़ी ... तोप जैसी .हाथ घिस जाते है पर आवाज नहीं निकलती .बज गयी तो ठीक नहीं तो बाहर .. outercorden में ।
इसके बाद का दरवाजा है सबसे जबरदस्त ..गर्भ गृह का दरवाजा !दरवाजे पर घंटियाँ नहीं हैं ..देवदूत हैं चार -पांच मानो अन्दर के भगवान ने अपने सिपाही लगा रखे हों ..इतने खतरनाक की सांस अटक जाती है आने वाले की .पूरा वैद ,पुराण ,मंत्र ,आरती सब बांच दो इनके आगे पर तस से मस नहीं होते और मजे की बात आपके चहरे पर हवाइयां उड़ रही हो ,पसीने से शर्ट का रंग धुल गया हो ,धड़कन की आवाज दो फिट दूर से हथोडे के माफिक सुनाई दे रही हो ॥पर इनके कानो पर जू नहीं रेंगती दिखती । दुनिया जहां की बाते बता दें इन्हें पर अचानक पूछ बैठेंगे की तुम्हारे घर के पिछवाडे वाली गली के आखरी मकान के पिछले दरवाजे पर कितनी खूँटियाँ हैं ...लो कर लो बात!तो जनाब इन देवदूतों से पार पाना आसमान से तारे तोड़ लाने के बराबर है ..कम से कम मुझ जैसे कम अक्ल अहमकों के लिए तो ऐसा ही है ।
पिछले जन्मो के अच्छे कर्म चाहिए या इस जन्म का साम- दाम- दंड- भेदी प्रयास ;माथे पर इबारत चाहिए या हाथों में लकीरें ,माँ बाप का आर्शीवाद चाहिए या दोस्तों की निर्दोष दुआएं ;व्यक्तित्व की सच्चाई चाहिए या कृतित्व में गंभीरता ;मन की सत्यता चाहिए या मस्तिष्क की तीक्ष्णता ;वस्तुस्थिति का धरातल चाहिए या सपनों का जाल चाह चाहिए ,आस चाहिए ,विश्वास चाहिए ..जाने क्या क्या चाहिए इस इश्वर के दर्शनों को ..मैं तो जान ना सका ...कम से कम इस जनम में तो नहीं !

टिप्पणियाँ

  1. हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |

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