एक और प्रेम कविता
क्या करें हमारे प्यार पर तो बाज़ार छा गया ....
शर्की सल्तनत की आखिरी निशानी
गिर चुके से ...
खँडहर से खड़े खड़े किले
की ऊबी दीवारों पर
जब तुमने लिखा था हमारा नाम
ये सोचा ना होगा
की एक दिन हम
'बातवाला पीसीओ' के साइनबोर्ड के नीचे आ जाएंगे ॥
जिस पेड़ के पेट को छीलकर
तुमने पान के पत्ते सा कुछ उकेरा था
उसकी जड़ों के ऊपर अब ..
टायरों के निशाँ हैं
गिर चुके से
खंडहर से खड़े खड़े
किले की ऊबी दीवारों को देखने
अब भी कुछ लोग आते हैं
उनकी गाड़ियों के लिए
पार्किंग लौट तो चाहिए !!
लगता है दुनिया की हर शाश्वत चीज़ को खतरा बाज़ार से है..."प्रेम फिर भी बचा रहेगा", कवियों का ये दिलासा कहीं अति महत्वाकांक्षी आशावाद साबित न हो....
जवाब देंहटाएंआपकी चिंताओं को साझा करते हुए.
kya kahen? bas sukh ke palon ke liye aabhar
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपकी कविता का जवाब है .......
जवाब देंहटाएंयुही अगर प्यार पर बाज़ार और आदमी पर बाजारवाद छाता गया तो वो दिन दूर नहीं जब हर धड़कता दिल ये कहेगा ....
जवाब देंहटाएंमुझे गुमान था चाहा बहुत ज़माने ने मुझे
में अज़ीज़ सबको था मगर ज़रूरत के लिए .........
खुदा करे बाज़ार ऐसी ऊचाइयां कभी न छुए....
Sach ab bazar ki pahunch se kuch bhi dur nahin hai.
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